
बिहार चुनाव 2025 की रणभेरी क्या बजी, NDA के खेमे में कुर्सी का कुरुक्षेत्र शुरू हो गया। बीजेपी और जेडीयू भले ही ‘आधी-आधी’ सीटों पर मन बना चुके हों, लेकिन जीतन राम मांझी जैसे छोटे लेकिन ज़िद्दी खिलाड़ी ने गेम में ट्विस्ट ला दिया है।
“15 सीट चाहिए… और चाहिए अभी!” — ये नहीं किसी चुनावी नारों की गूंज नहीं, बल्कि रामधारी सिंह दिनकर की ‘रश्मिरथी’ से निकले मांझी जी के राजनीतिक तीर हैं।
रश्मिरथी का पन्ना या पॉलिटिक्स का ड्रामा?
जीतनराम मांझी ने सीटों की मांग ऐसे अंदाज़ में की जैसे कर्ण ने युद्ध में अस्त्र मांगा हो।
“हम सम्मान चाहते हैं, भीख नहीं!”
बोले कि अगर सम्मान नहीं मिला, तो अपनी अलग राह बनाएंगे। मतलब NDA से बाय-बाय!
क्या कहता है सीटों का गणित?
| सीट | पिछला प्रदर्शन | मांग का स्टेटस |
|---|---|---|
| इमामगंज, बाराचट्टी, सिकंदरा, टेकारी | जीती गई थीं | ऑफर की गईं |
| कुटुंबा, मखदुमपुर, कसबा | हारी गई थीं | ऑफर की गईं |
| शेरघाटी, अतरी | नई मांग | एक मिल सकती है |
कुल मांग: 15 सीटें
बीजेपी की ऑफर: 7 सीटें
‘हम’ या ‘हमेशा नाराज़ दल’?
HAM पार्टी यानी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा इस बार NDA में खुद को “अपमानित” महसूस कर रही है। मांझी बोले:

“हमारा आखिरी विकल्प है अकेले चुनाव लड़ना। 6% वोट लेकर हम राष्ट्रीय पार्टी बन सकते हैं।”
उधर महागठबंधन को आंख दिखाते हुए कहा – “15 से कम सीट दीं तो उधर भी नहीं जाएंगे!”
सियासी विश्लेषण या चाणक्य नीति?
मांझी का ये रश्मिरथी मूव सीटों की सौदेबाजी के लिए है, न कि सचमुच एनडीए छोड़ने की मंशा। लेकिन ये भी सच है कि 2025 के चुनाव में हर वोट और हर सीट ‘महाभारत’ के शस्त्र जैसा है।
‘हम’ अभी भी ‘हैं’ NDA में… पर कब तक?
मांझी की बात सुनकर NDA में सन्नाटा है या सस्पेंस, ये तो आने वाले हफ्तों में पता चलेगा।
फिलहाल तो NDA को एक बात समझनी होगी — “रश्मिरथी पढ़ने वाला हर कोई चुप नहीं बैठता!”
